बाल मनोविज्ञान क्या है? इसे समझने के टिप्स व जुड़ी समस्याएं | Tips To Understand Child Psychology

माता – पिता अपने बच्चे की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ते वह उन्हें हर अच्छी सुविधा प्रदान करने की कोशिश करते हैं। यदि बच्चे के व्यवहार को अजीब सा पाते हैं तब उन्हें यह समझ नहीं आता कि बच्चे के साथ क्या समस्या है। बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है इस विषय में जानने के लिए बच्चे की मनोवैज्ञानिक स्थिति क्या है (Child Psychology samajhne ke tips) इसके विषय में समझना होगा।

इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि बाल मनोविज्ञान क्या है। (Child psychology kya hai) बच्चों की साइकोलॉजि  को समझने के टिप्स तथा समस्याओं के बारे में (Child Psychology se judi tips aur samasya)बताएंगे। यदि आप भी इस विषय में जानकारी चाहते हैं तो आप हमारे आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

बाल मनोविज्ञान क्या है?(Child psychology kya hai?)

बाल मनोविज्ञान विज्ञान ( Child psychology kya hai?) की वह शाखा है जिसके भीतर बच्चों के संज्ञानात्मक भावात्मक रचनात्मक स्थितियों को जाना सिखाया जाता है। बाल मनोविज्ञान के भीतर बच्चों के व्यवहार को देखकर ही आप उनकी दिमाग की स्थिति को पढ़ सकते हैं या समझ सकते हैं कि बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है।

बाल मनोविज्ञान क्या है इसे समझने के टिप्स व जुड़ी समस्याएं Tips To Understand Child Psychology

बाल मनोविज्ञान में शामिल विशेषज्ञों को साइकोलॉजिस्ट कहा जाता है। साइकोलॉजिस्ट शिशु के बचपन से किशोरावस्था तक के आदतों को देखकर बच्चे की संज्ञानात्मक बा बौद्धिक स्थिति को समझने का प्रयास करते हैं।

बच्चे के मनोविज्ञान (Psychology) को समझना क्यों जरूरी है?

बच्चे की मनोवैज्ञानिक स्थिति समझना इस कारण (Child psychology samajhne ke karan) जरूरी है क्योंकि कई मामलों में बच्चे अपने मन की बात किसी डर या शंका के कारण दूसरों से शेयर नहीं कर पाते। साइकोलॉजिस्ट के द्वारा बच्चे की मनोदशा को समझने से बच्चे का इलाज ठीक प्रकार से हो पाता है।

सायकोलॉजी के द्वारा बच्चे के दिमाग को शांत किया जा सकता है बा बच्चे को एक स्वस्थ इंसान बनाया जा सकता है। नीचे बच्चों की मनोदशा को समझने के कुछ जरूरी कारणों के विषय में बताया गया है।

मानसिक स्थिति का आंकलन

यदि बच्चे के दिमाग में अशांति या एनएक्स आईडी है तो साइकोलॉजि के द्वारा बच्चे की मानसिक स्थिति का आकलन किया जा सकता है और उसे सुधारा जा सकता है।

भावनात्मक स्थिति का आकलन

बच्चा अपनी भावनाओं को किस हद तक अपने पेरेंट्स से छुपाता है या वह अपने परिवार को क्या बताता है। इसके विषय में जानकारी साइकोलॉजि के द्वारा प्राप्त की जा सकती है। बच्चे की भावनात्मक स्थिति क्या है या बच्चे को किन चीजों की जरूरत है। इसके विषय में भी साइकोलॉजी के द्वारा पता लगाया जा सकता है।

सामाजिक स्थिति का आकलन

बच्चे की सामाजिक स्थिति क्या है या बच्चा समाज में किस प्रकार से घुल मिल पा रहा है, उसे समाज में अच्छा प्रतीत हो रहा है या घुटन महसूस हो रही है। यदि वह लोगों से नहीं मिलता है तो उसका कारण क्या है इसके विषय में भी जानकारी  साइकोलॉजि के द्वारा प्राप्त की जा सकती है। और बच्चे को सामाजिक होने में ब उसका व्यवहार सुधारने में मदद मिल सकती है।

शारीरिक विकास का आकलन

कई बार बच्चा शारीरिक विकास के कारण अपने आप को घृणा में महसूस करता है। दूसरे बच्चों से कम शारीरिक विकास होने या दूसरे बच्चों के मुकाबले कम सुंदर दिखने के कारण भी बच्चे के दिमाग में कई सारे गलत विचार आ सकते हैं। इन विचारों को समझने के लिए भी बाल मनोविज्ञान जरूरी है जिससे बच्चे के दिमाग से ऐसी बेकार की बातों को साफ किया जा सके व उसे खुद से प्रेम करना सिखाया जा सके।

संज्ञानात्मक विकास का आकलन

संज्ञानात्मक विकास वह विकास है जिसमें बच्चा अपनी ज्ञानेंद्रियों से सीखता है। बच्चा जिन चीजों को देखता है उन्हीं चीजों को सीखने का प्रयास करता है। बाल मनोविज्ञान से इस विषय में पता लगेगा कि बच्चे का संज्ञानात्मक विकास कितना तेज है, क्या बच्चा तेजी से चीजों को सीख पा रहा है या उससे चीजों को सीखने में समय लग रहा है इसके विषय में जानकारी मिलेगी।

बौद्धिक स्थिति का आकलन

बाल मनोविज्ञान के द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि बालक अपने उम्र के बच्चों के हिसाब से अपना बौद्धिक विकास कितना कर पा रहा है वह अन्य बच्चों की तरह अपनी उम्र के हिसाब से कैसा सोचता है तथा वह पढ़ने लिखने में कैसा हैं। बच्चे के दिमाग में अपने उम्र से ही बच्चों की तरह विचार आते हैं या वह कुछ और सोचता है इसमें समझने में मदद मिलेगी।

बच्चों से जुड़ी साइकोलॉजिकल समस्याएं  (Bachon Mein Psychological Problem)

बच्चों के अंदर साइकोलॉजिकल समस्याएं (Child psychology se judi problems) वह समस्याएं होती हैं जो बच्चे के निजी जीवन या सामाजिक जीवन और बौद्धिक विकास को प्रभावित करती हैं। जिसके कारण बच्चा भावनात्मक रूप से कमजोर पड़ सकता है। नीचे हमने आपको बच्चों से जुड़ी कुछ साइकोलॉजिकल समस्याओं के विषय में जानकारी दी है।

अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD)

अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) एक ऐसी समस्या है जिसके लक्षण बच्चे में बचपन से ही दिखने लगते हैं। इस समस्या में बच्चे का बौद्धिक विकास प्रभावित होता है तथा बचपन से ही बच्चा अपनी चीजों को भूलने, एकाग्रता कम होने, अपने कार्य को पूरा ना कर पाने जैसी समस्याओं से पीड़ित होता है। यह समस्या अनुवांशिक या पर्यावरण है दोनों ही कारणों के कारण हो सकती है जिसमें बच्चे का दिमागी विकास प्रभावित होता है।

बौद्धिक विकलांगता (Intellectual Disability)

बौद्धिक विकलांगता या न्यूरोलॉजिकल डिसेबिलिटी बौद्धिक विकास से जुड़ी हुई समस्या है। बौद्धिक विकलांगता के लक्षण 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में ही दिखने लग जाते हैं। इन बच्चों का आईक्यू लेवल सामान्य बच्चों से कम होता है तथा उन्हें चीजें सीखने में भी दिक्कत आती है। बौद्धिक विकलांग बच्चों के बातचीत का तरीका तथा उनके व्यवहार का तरीका भी बिल्कुल अलग होता है।

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder)

ऑटिज्म डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों का रहन-सहन उनके बात करने का तरीका व उनके व्यवहार करने का तरीका बिल्कुल अलग होता हैं। इस डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों की बौद्धिक क्षमता भी प्रभावित होती है । ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों मैं इसके लक्षण बहुत कम ही उम्र में दिखने लगते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार पूरे विश्व में ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की संख्या 16% है।

कंडक्ट डिसऑर्डर (Conduct Disorder)

इस डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों का व्यवहार काफी आक्रमक होता है तथा यह व्यवहार समय के साथ बढ़ता चला जाता है। कंडक्ट डिसऑर्डर के कारण बच्चे अवसाद एडीएचबी सीखने से संबंधित विकार से पीड़ित होते हैं।

एडजस्टमेंट डिसऑर्डर (Adjustment Disorder)

एडजेस्टमेंट डिसऑर्डर जैसा किसके नाम से ही प्रतीत होता है। बच्चे को एक नए माहौल में ढलने में दिक्कत आती है। यदि बच्चा किसी से दूर जा रहा है तब भी बच्चे के अंदर निराशा के भाव आने लगते हैं और वह धीरे-धीरे इसे अपने  व्यवहार में ले आता है। बच्चा नए लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं करता तथा में जिस माहौल में रह रहा है उसी में रहना उसे पसंद होता है।

चाइल्डहुड सिजोफ्रेनिया (Childhood Schizophrenia)

चाइल्ड शिजोफ्रेनिया एक बौद्धिक बेकार है यह 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में भी दिखाई देने लगता है। इस तरीके का डिसऑर्डर बहुत ही संगीन माना जाता है तथा यह कहा जाता है कि पूरे विश्व में सिर्फ 1% बच्चे ही इस डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। किशोरावस्था अर्थात 18 वर्ष की उम्र में भी इस डिसऑर्डर से बच्चे पीड़ित होने लगते हैं। इस डिसऑर्डर में बौद्धिक क्षमता का कम होना भावनाओं के नियंत्रण में कमी आना व्यवहार में बदलाव आना जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं।

अडॉप्टेड चाइल्ड सिंड्रोम (Adopted Child Syndrome)

अडॉप्टेड चाइल्ड चिल्ड्रन गोद लिए हुए बच्चों में देखा जाता है इस सिंड्रोम में माता-पिता तथा बच्चों के बीच भावनात्मक जुड़ाव ना होने के कारण तथा उनके मानसिक सोच में दूरी होने के कारण बच्चा अपने माता-पिता से अलग महसूस करने लगता है। धीरे धीरे बच्चे के व्यवहार में झूठ बोलना तथा चोरी करने जैसी आदतें भी उत्पन्न होने लगते हैं।

वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में हर साल 40000 से अधिक बच्चों को दिए जाते हैं। इन बच्चों में भावनात्मक जुड़ाव अपने माता-पिता से ना होने के कारण या उन्हें बिल्कुल नया जीवन मिलने के कारण भी बच्चे नए माहौल में एडजस्ट नहीं हो पाते।

स्टीरियोटाइप मूवमेंट डिसऑर्डर (Stereotypic Movement Disorder)

स्टीरियोटाइप मूवमेंट डिसऑर्डर में बच्चा बिना वजह से अपना हाथ पिलाना नाखून चबाना अपना सिर्फ देखना या किसी प्रकार की हरकत करता रहता है। स्टीरियोटाइप मूवमेंट डिसऑर्डर मैं बच्चा आक्रमण भी हो सकता है बस किसी व्यक्ति को नुकसान भी पहुंचा सकता है।

 यह डिसऑर्डर बोरियत या खालीपन की वजह से धीरे-धीरे बढ़ता रहता है। उसकी जो टाइप मूवमेंट डिसऑर्डर के लक्षण हाथ पैरों को बेवजह हिलाना सिर्फ इतना अपने से ही बातें करना है।

स्लगिश कॉग्निटिव टेम्पो (Sluggish Cognitive Tempo)

इस डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चे बहुत ही स्वस्थ होते हैं वह किसी नए काम को शुरू नहीं कर पाते ऐसे बच्चे खुली आंखों से सपने देखने वाले होते हैं। उन्हें किसी कार्य को करने में बहुत कठिनाई आती है स्लगिश कॉग्निटिव टेंपो से पीड़ित बच्चे दुनिया से खुद को अलग रखते हैं दुनिया में एडजस्ट करने में उन्हें समस्या आती है।

सेलेक्टिव म्यूटिज्म (Selective Mutism)

सिलेक्टेड म्यूटेशन की समस्या में बच्चे को बोलने संबंधी विकार होता है। इस समस्या में बच्चा सामने वाले की बात सुनकर भी उसे दोहराने में भी दिक्कत होती है। सिलेक्टेड म्यूटेशन से पीड़ित बच्चे को हकलाने की समस्या होती है यह बीमारी लड़कों की तुलना में लड़कियों में अधिक देखी जाती हैं।

डिप्रेसिव मूड डिसरेगुलेशन डिसऑर्डर (Disruptive Mood Dysregulation Disorder)

डिप्रेसिव मूड  रेगुलेटिंग डिसऑर्डर मैं बच्चा अक्सर चिड़ा रहता है जिसके कारण वह जल्दी ही अपना दिमागी संतुलन खो बैठता है। यह समस्या अक्सर किशोरों में होती है इस समस्या में बच्चा जल्दी ही गुस्सा करने लगता है।

ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (Obsessive-Compulsive Disorder)

ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर मैं अक्सर बच्चे को एक ही कार्य को या एक ही व्यवहार को बार-बार दोहराने की आदत होती है वह एक कार्य को बार-बार करने की धुन लगी रहती है।

बच्चे को समझाने पर भी बच्चा समझने का प्रयास नहीं एक अध्ययन के अनुसार लगभग 45% बच्चों में यह समस्या आनुवांशिक रूप से पाई जाती है।

सेक्सुअल बिहेवियर समस्याएं (Sexual Psychological Disorder)

यह डिसऑर्डर बच्चों में सेक्स संबंधित समस्याओं के कारण होता है। छोटी उम्र में यौन संबंध बनाने जैसी समस्याओं के कारण बच्चे का व्यवहार और खराब होने लगता है तथा बच्चा आक्रामक रवैया हो जाता है। सोशल बिहेवियर समस्याओं की मुख्य कारण जानकारी का अभाव होता है।

टॉरेट सिंड्रोम (Tourette Syndrome)

टॉरेट एंड रोम बच्चों में तंत्रिका तंत्र में कमी के कारण पाया जाता है। टॉरेट सिंड्रोम में बच्चे हाथ पैर हिलने  लगते हैं बच्चा एक ही तंत्रिका तंत्र को बार-बार हिलाता है।

टॉयलेट सिंड्रोम में बच्चे के अंदर बार-बार पलके झुकाने, अजीब सी आवाज निकालने, बार बार हिचकी आने जैसे सिम्टम्स दिखाई देने लगता है।

एंग्जायटी और अवसाद (Anxiety and Depression) एंग्जायटी हमारे समाज में सबसे ज्यादा बात करने वाला एक टॉपिक है जिस पर सभी मनोवैज्ञानिक बात करते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार एंग्जायटीबच्चों में भी हो सकती है। यदि बच्चा अधिक निराश या उदास रहता है तो बच्चे के अंदर अवसाद हो सकता है।

बच्चे के अंदर  एंग्जायटी या अवसाद होने का कारण बेवजह ही उनके माता-पिता से दूर होने की समस्या हो सकती है।

पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (Post-Traumatic Stress Disorder)

पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (Post-Traumatic Stress Disorder) का कारण जीवन में किसी भयानक या अप्रिय घटना का होना हो सकता है। इस समय में जीवन में होने वाली कोई ऐसी घटना जो बच्चे को बहुत परेशान करती है उसके कारण यह सिंघम बच्चों में पाया जाता है।

बच्चे की साइकोलॉजी समझने के बेहतरीन 15+ तरीके | (Tips To Understand Child Psychology)

बच्चों की साइकोलॉजि को समझने के 15 (Child Psychology samajhne ke tips) से अधिक टिप्स के विषय में नीचे पॉइंट के माध्यम से जानकारी दी गई है जिससे आप बच्चे के भावनात्मक बौद्धिक व संज्ञानात्मक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है।

बच्चे के व्यवहार का अवलोकन

बच्चे की मनोदशा को समझने के लिए बच्चे का व्यवहार अवलोकन करना बहुत आवश्यक है। यदि बच्चे के परिवार या आसपास के लोग बच्चे के व्यवहार पर अच्छे से गौर करेंगे तब बच्चे की मनोदशा को समझा जा सकता है।

 बच्चे के माता-पिता, भाई-बहन, शिक्षक आदि को बच्चे की आदतों तथा उसके द्वारा किए गए क्रियाकलापों पर गौर करना चाहिए जिससे बच्चे की मानसिक स्थिति की समझ होती है।

दें फुल अटेंशन

बच्चा जब भी अपने माता पिता के साथ हो तब माता-पिता को बच्चे को पूरी अटेंशन देनी चाहिए। बच्चे के साथ खेलना चाहिए तथा बच्चे के व्यवहार पर गौर करना चाहिए।

 यदि बच्चा कोई ऐसा व्यवहार कर रहा है जो सामाजिक रूप से सामान्य नहीं है तब माता-पिता को बच्चे को डांटना चाहिए और उसके व्यवहार सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इससे बच्चे की मनोदशा सुधारने में  मदद मिलती है।

किसी बात को अनसुना न करें

परिवार या बच्चे के आसपास के लोगों को कभी भी उसकी बात का अनसुना नहीं करना चाहिए। बच्चे के अंदर कई शारीरिक तथा मानसिक परिवर्तन होते हैं जिसके कारण वह परेशान रह सकता है। यदि बच्चा आपसे कुछ बात करना चाह रहा है तो उसकी बात को विस्तार पूर्वक सुनने व समझने का प्रयास करना चाहिए।

बच्चे के साथ समय गुजारे

माता पिता को बच्चे के साथ समय गुजारना चाहिए तभी वह अपने परिवार को बिना संकोच के अपने परेशानियों के विषय में बता पाएगा। अपने पेरेंट्स के साथ अधिक समय मिलने पर उसके अंदर अपने पेरेंट्स के प्रति झिझक निकल जाएगी और वह अपनी मनोदशा को ठीक प्रकार से उनके सामने प्रकट कर पाएगा।

बच्चे से जुड़ी समस्या का कारण ढूंढें

बच्चा यदि किसी के साथ लड़ाई झगड़ा या दुर्व्यवहार करता है तो उसे डांटना उचित नहीं है। बच्चे के ऐसे व्यवहार का कारण ढूंढने पर ही बच्चे की आदत को बदला जा सकता है।

बच्चे के मानसिक विकास को समझें

हर बच्चे का मानसिक विकास अलग-अलग स्तर से होता है कुछ बच्चे चीजों को जल्दी सीख सकते हैं परंतु कुछ बच्चों को ऐसा करने में समय लगता है इसलिए पेरेंट्स को बच्चे की मानसिक दशा को समझ कर उसके साथ व्यवहार करना चाहिए।

बातें करें

पेरेंट्स को अपने बच्चे से रोजाना उसकी दैनिक गतिविधियों उसके हाल-चाल तथा उसके दिन के विषय में बात करनी चाहिए। इससे बच्चे के व्यवहार तथा मानसिक आकलन का पता लगाया जा सकता है।

बच्चे की बातों का सही अर्थ समझें

कभी-कभी बच्चे अपने माता-पिता से सीधे तौर पर नहीं बल्कि घुमा फिरा कर कुछ बातें कहना चाहते हैं। माता-पिता की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों की बातों का सही अर्थ निकाल कर उन्हें समझे और बच्चे की समस्या का समाधान करने का प्रयास करें।

बॉडी लैंग्वेज व आई कॉन्टैक्ट पर दें ध्यान

माता पिता को हमेशा अपने बच्चे के बॉडी लैंग्वेज और आई कांटेक्ट के विषय में ध्यान रखना चाहिए। जिस दिन उन्हें अपने बच्चे का व्यवहार कुछ अजीब लगे उस दिन बच्चे से बात करके समस्या को समझने का प्रयास करना चाहिए।

बच्चों की भावनाओं को समझो

बच्चे की भावनाएं बिल्कुल मासूम होते हैं। बड़ों की तुलना में बच्चे जैसा सोचते हैं मैं बिल्कुल अलग होता है इसलिए पेरेंट्स को कभी भी बच्चों की बातों को बचकानी हरकत करके नहीं डालना चाहिए। बल्कि बच्चों की भावनाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए।

बच्चे के घनिष्ठ मित्र बने

पेरेंट्स का व्यवहार बच्चे के साथ बिल्कुल मित्रता पूर्वक होना चाहिए जिससे बच्चा अपनी सारी समस्याओं को पेरेंट्स के साथ शेयर कर सके बच्चे की हर जरूरी ख्वाहिश को पूरा करना चाहिए ब अपने बच्चे से मानसिक रूप से अटैच रहना चाहिए।

बच्चे की प्रशंसा करें

यदि बच्चे ने प्रशंसा योग्य कोई कार्य किया है तब बच्चे की प्रशंसा करनी चाहिए और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इससे बच्चे का आत्मविश्वास पड़ता है और वह अपने जीवन में अच्छा करने के लिए प्रेरित होता है।

बच्चे को सम्मान दें

बच्चे की भावनाओं का हमेशा सम्मान करना चाहिए बच्चा जो सोच रहा है उसके विषय में गौर करना चाहिए।

बच्चे की पसंद नापसंद जाने

पेरेंट्स को बच्चे की पसंद ना पसंद का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इससे बच्चे के मन में अपने पेरेंट्स के प्रति प्यार बढ़ता है बा उसकी मनोदशा भी अच्छी रहती है।

बच्चे से सही सवाल पूछे

बच्चे से हमेशा बच्चे के स्तर के सही सवाल करने चाहिए जिससे उसे उत्तर देने में आसानी हो बात करते समय अपनी भी कुछ बातें बच्चे के साथ शेयर करनी चाहिए जिससे बच्चा आपके साथ कनेक्ट कर पाए।

टॉपिक से संबंधित प्रश्न एवं उनके उत्तर

Q. बौद्धिक विकलांगता के लक्षण कब दिखने लगते हैं?

बौद्धिक विकलांगता के लक्षण 18 वर्ष से पहले दिखने लगते हैं।

Q. टारेट सिंड्रोम किससे संबंधित है?

टॉरेड सिंड्रोम तंत्रिका तंत्र से संबंधित है।

Q. चाइल्डहुड शिजोफ्रेनिया कितने प्रतिशत बच्चों में पाए जाती हैं?

चाइल्डहुड शिजोफ्रेनिया विश्व के लगभग 1% बच्चों में पाई जाती है।

Q. डिप्रेशन के क्या लक्षण होते हैं?

डिप्रेशन में बच्चा निराश तथा उदास रहता है।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल के माध्यम से हमने आपको बाल मनोविज्ञान क्या है, इसे समझने के टिप्स व जुड़ी समस्याएं  (Tips To Understand Child Psychology) के विषय में जानकारी प्रदान की है।यदि फिर भी आपके मन में कोई प्रश्न है तो आप नीचे दिए हो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं।

हमारे आर्टिकल के द्वारा प्रदान की जाने वाली जानकारी बिल्कुल ठोस तथा सटीक होती है। यदि आपको हमारा आर्टिकल पसंद आए तो आप इसे अवश्य शेयर करें। हमारा आर्टिकल पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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