शिशु में वाटर इंटॉक्सिकेशन क्या है जाने इसके कारण लक्षण एवं उपाय | Water intoxication kya hai?

पानी मनुष्य के जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग होता है। जिसके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता बच्चों में भी पानी की आवश्यकता होती है। 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को पानी नहीं पिलाया जाता जब वह ठोस पदार्थ खाना शुरू कर देते हैं तब बच्चे पानी का सेवन कर सकते हैं। परंतु अधिक पानी पीने के कारण बच्चों को वाटर इंटॉक्सिकेशन हो जाता है यह क्यों होता है (Water intoxication kya hai? )इसके विषय में अक्सर हमें जानकारी नहीं होती।

इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको शिशु में वाटर इंटॉक्सिकेशन के कारण लक्षण और उपाय (Water intoxication ke reason, symptoms aur upay)के विषय में जानकारी देंगे। यदि आप भी इस विषय में जानकारी चाहते हैं तो हमारे आर्टिकल को अंत तक पढ़े।

वाटर इंटॉक्सिकेशन क्या होता है? | Water intoxication kya hai?

वाटर इंटॉक्सिकेशन उसे स्थिति को  (Water intoxication kya hai? ) कहते हैं। जब 6 महीने के पश्चात बच्चा ठोस पदार्थ लेना शुरू करता है। और उसे पानी पिलाना शुरू किया जाता है। यदि 6 महीने के बाद बच्चे को ज्यादा मात्रा में पानी पिला दिया जाता है तो वाटर इंटॉक्सिकेशन की स्थिति जागृत हो जाती है।

शिशु में वाटर इंटॉक्सिकेशन क्या है जाने इसके कारण लक्षण एवं उ

 वाटर इंटॉक्सिकेशन यानी कि शरीर में पानी की अधिकता के कारण बच्चे का छोटा सा पेट पानी से ही भरा रहता है और वह दूध पीने में सक्षम नहीं हो पाता। जिसके कारण बच्चों के शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। पोषक तत्वों की कमी होने के कारण बच्चों के शरीर का वजन कम होने लगता है।

 और बच्चा बिल्कुल पतला होने लगता है बच्चे को अपनी शारीरिक क्रियो को करने के लिए भी एनर्जी नहीं मिल पाती है। धीरे-धीरे बच्चा बीमार होने लगता है। शरीर में पानी की अधिकता के कारण सोडियम का लेवल भी डिसबैलेंस हो जाता है इस स्थिति को शारीरिक वाटर इंटॉक्सिकेशन की श्रेणी में रखा गया है।

वाटर इंटॉक्सिकेशन के लक्षण

वाटर इंटॉक्सिकेशन के क्या-क्या लक्षण  (Water intoxication ke symptoms)हो सकते हैं। उसको जानकर हम यह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि बच्चा इस प्रकार के विकार से पीड़ित है।और उसका तुरंत इलाज करवा सकते हैं इसके विषय में नीचे जानकारी प्रदान की गई है।

1.शरीर के तापमान का गिरना

यदि शरीर में वाटर इंटॉक्सिफिकेशन यानी की पानी की अधिकता हो जाती है तो शरीर का तापमान धीरे-धीरे गिर जाता है। शरीर का तापमान अपने निचले स्तर पर पहुंच जाता है।

 यदि शरीर का तापमान बहुत अधिक गिर गया है तो हमें यह समझ जाना चाहिए। कि बच्चा वाटर इंटॉक्सिफिकेशन से पीड़ित है। यह एक बहुत बड़ा लक्षण है शरीर में यदि पानी की ज्यादा दिखता हो जाती है और शरीर में गर्माहट प्रदान करने वाले पोषक तत्व नहीं रहते। तो समानता शरीर का तापमान गिरने लगता है इससे बचने के लिए हमें बच्चों को कम मात्रा में पानी पिलाना चाहिए।

2.चिड़चिड़ापन

शरीर में पानी की अधिकता होने के कारण और दूध की कमी होने के कारण पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं हो पाती। इसके कारण शरीर में इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस भी बिगड़ जाता है। इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस के बिगड़ने के कारण इसका सीधा प्रभाव बच्चों के दिमाग पर पड़ता है। जिसके कारण बच्चा चिड़चिड़ा दिखाई देने लगता है। बच्चे का चिड़चिड़ापन भी वाटर इंटॉक्सिफिकेशन का एक प्रमुख लक्षण होता है।

3.चेहरे पर सूजन आना

वाटर इंटॉक्सिफिकेशन के कारण अक्सर चेहरे पर सूजन आ जाती है। शरीर में पानी की अधिकता होने के कारण सोडियम का लेवल शरीर में डिसबैलेंस हो जाता है। सोडियम लेवल डिसबैलेंस होने के कारण शारीरिक संतुलन बिगड़ा हैं। और बच्चों के चेहरे पर सूजन आने लगती है। यह भी वाटर इंटॉक्सिकेशन का एक प्रमुख लक्षण होता है जैसे ध्यान में अवश्य रखना चाहिए। अक्सर शरीर में खून की कमी के कारण भी सूजन आ जाती है। पोषक तत्व की पूर्ति न होने के कारण शरीर कौन बनना भी काम कर देता है जिसके वजह से भी चेहरे पर एवं पूरे शरीर पर सूजन आ सकती है।

4.हाइपोनेट्रिमिया

अक्सर डॉक्टर के द्वारा 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को पानी पिलाने से मना किया जाता है। क्योंकि मां के दूध के माध्यम से बच्चे अपने शरीर में पानी की पूर्ति कर लेते हैं।

 यदि 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को पानी पिलाया जाता है तो उन्हें हाइपोनेट्रिमिया नाम की बीमारी हो जाती है। इस बीमारी में बच्चों के शरीर में नमक की कमी हो जाती है। 

नमक की कमी होने के कारण बच्चों के अंदर सर दर्द, बेचैनी, धुंधलापन, सस्ती, हाथ पैरों में दर्द, सूजन, दस्त, तेज बुखार पसीना कभी-कभी आदि तरीके के लक्षण हाइपोनेट्रिमिया नाम की बीमारी में दिखाई देने लगते है।

नोट :

वाटर इंटॉक्सिफिकेशन में यदि बच्चे की हालत ज्यादा खराब होती है तो उसकी मृत्यु होने के भी संभावना बढ़ जाती है। इसलिए यदि बच्चे की हालत ठीक नहीं है। तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और अच्छा परामर्श देकर उसका इलाज करना चाहिए।

वाटर इंटॉक्सिकेशन होने के कारण

वाटर इंटॉक्सिकेशन के लक्षणों के  (Water intoxication ke symptoms)विषय में हमें भली-भांति जानकारी प्राप्त हो गई है। परंतु वाटर इंटॉक्सिकेशन किन कर्म के वजह से होता है।

 उसके विषय में भी जानना बहुत आवश्यक है जिससे हम अपने बच्चों को ऐसे कर्म से दूर रख सके और इस तरीके की बीमारी को न होने दे। उसके विषय में नीचे पॉइंट्स के माध्यम से आपको जानकारी प्रदान की गई है।

1.अतिरिक्त पानी पिलाने की गलती

यदि बच्चे को जरूर से अधिक पानी पिलाया जाता है। तभी बच्चों को वाटर इंटॉक्सिकेशन की समस्या होने लगती है। जैसा कि हमने पहले भी आपको इस आर्टिकल में बताया है।

 कि 6 महीने से कम उम्र के बच्चों के अंदर पानी की पूर्ति मां का दूध और फॉर्मूला मिल्क कर देता है। इसके अलावा 6 महीने से कम उम्र के बच्चे को पानी की आवश्यकता नहीं होती। परंतु यदि फिर भी बच्चे को फलों का जूस या पानी का सेवन कराया जाता है तो उसे वाटर इंटॉक्सिकेशन की समस्या हो जाती है।

2.फॉर्मूला मिल्क बनाते समय ज्यादा पानी मिलाने की गलती

फॉर्मूला मिल्क बनाने का भी एक तरीका होता है। इसके विषय में इंस्ट्रक्शन फार्मूला मिलाकर पैक के ऊपर दिए गए होते हैं। जिसे हमें बहुत गंभीरता से और भली-भांति रूप से फॉलो करना आवश्यक होता है।

 यदि हम उन इंस्ट्रक्शन को फॉलो नहीं करते तो इसका भुगतान बच्चों को करना पड़ता है। फॉर्मूला मिल्क बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जितना म पानी पैकेट के ऊपर लिख रखा है। उतना ही पानी हमें फॉर्मूला मिल्क में मिलना चाहिए।

 यदि जरूरत से अधिक पानी फॉर्मूला मिल्क में मिला दिया जाता है और उसे बच्चों को पिलाया जाता है तो बच्चे के अंदर वाटर इंटॉक्सिकेशन की समस्या हो जाती है।

3.कप में पानी पिलाने की आदत

अक्सर जब बच्चा कब पकड़ना स्टार्ट करता है या पानी पीने की शुरुआत करता है। तब बच्चे बहुत उत्साहित होते हैं और माता-पिता भी उन्हें खुशी-खुशी में कब से पानी पीने के लिए प्रेरित करते हैं।

 परंतु ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए यह बच्चे के लिए बहुत नुकसानदायक होता है। कब से बच्चा ज्यादा पानी पी लेता है और उसे वाटर इंटॉक्सिकेशन की समस्या हो जाती है।

वाटर इंटॉक्सिकेशन से बचाव के उपाय

वाटर इंटॉक्सिकेशन की समस्या से  (Water intoxication se bachav) )बचाव करके हम बिल्कुल भी इस बीमारी से पीड़ित नहीं होते।इसके क्या-क्या बचाव हो सकते हैं उसके विषय में नीचे जानकारी प्रदान की गई है

  • 6 महीने से कम उम्र के बच्चे को पानी का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। यदि शरीर में पानी की पूर्ति संतुलित होती है तो वाटर इंटॉक्सिकेशन की समस्या नहीं होती।
  • बच्चों को स्वाद देने के लिए जूस या आदि चीजों का भी सेवन नहीं करना चाहिए। यह भी बच्चों के अंदर पानी की मात्रा को बढ़ाते हैं और शरीर को इनफैक्ट कर देते हैं।
  • यदि बच्चा 6 महीने से ऊपर का है और उसमें ठोस पदार्थ लेना शुरू कर दिया है। तब भी आपको ज्यादा से ज्यादा मात्रा में बच्चों को पानी नहीं पिलाना चाहिए।
  • बच्चों को बिल्कुल संतुलित मात्रा में ही पानी देना चाहिए जिससे वाटर इंटॉक्सिकेशन की समस्या बच्चों के अंदर ना हो।
  • बच्चों को यदि आप पानी पीने को दे रहे हैं तो हमेशा नापतोल कर ही पानी पिलाना चाहिए। जिससे पानी का संतुलन शरीर में बना रहे।

टॉपिक से संबंधित प्रश्न एवं उनके उत्तर (FAQ) 

Q. वाटर इंटॉक्सिकेशन की समस्या क्यों होती है? 

जब बच्चे को ज्यादा मात्रा में पानी पिला दिया जाता है तो वाटर इंटॉक्सिकेशन की समस्या हो जाती है।

Q. कितनी उम्र से काम के बच्चे को पानी नहीं पिलाना चाहिए? 

6 महीने से कम उम्र के बच्चे को पानी नहीं पिलाना चाहिए वह अपने पानी की पूर्ति मां के दूध और फॉर्मूला मिल्क से करते हैं।

Q. शरीर में पानी की अधिकता होने के कारण क्या डिसबैलेंस हो जाता है? 

शरीर में पानी की अधिकता होने के कारण सोडियम का लेवल डिसबैलेंस हो जाता है।

Q. क्या 6 महीने के बाद बच्चे को पानी पिलाया जा सकता है? 

6 महीने से बड़ी उम्र के बच्चे को पानी पिला सकते हैं परंतु उसे भी संतुलित मात्रा में पानी पिलाना चाहिए।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल के माध्यम से हमने आपको शिशु में वाटर इंटॉक्सिकेशन क्या है जाने इसके कारण लक्षण एवं उपाय (Water intoxication ke reason, symptoms aur upay) के विषय में जानकारी देने का पूरा प्रयास किया है। यदि फिर भी आपके मन में कोई प्रश्न है तो आप नीचे दिए हो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं।

हमारे आर्टिकल के द्वारा प्रदान की जाने वाली जानकारी बिल्कुल ठोस तथा सटीक होती है। यदि आपको हमारा आर्टिकल पसंद आए तो आप इसे अवश्य शेयर करें। हमारा आर्टिकल पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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